रिश्तो को बेहतर करने की कला : रिलेशनशीप मास्टरी के बारे मे सीखने वाले हे यानी की रिश्तो को
कैसे बेहतर किया जाता है या हम लोग यूू कह सकते है की रिश्तो को कैसे संझोया जाता हैै।
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DRx DEVESH PAL |
तो दोस्तो आज हम लोग भगवद् गीता का पहला अध्याय पढ़ने वाले है और
रिलेशनशीप मास्टरी के बारे मे सीखने वाले हे यानी की रिश्तो को कैसे बेहतर किया जाता है
या हम लोग यूू कह सकते है की रिश्तो को कैसे संझोया जाता हैै।
Discussion On Topic : रिश्तो को बेहतर करने की कला ||
तो चलिए इसको स्टार्ट करते है, तो जब पांडवो और कौरवो के बीच
युद्ध शुरू होने वाला रहता है तो अर्जून श्रीकष्ण से कहते है , हे! केशव मेरे रथ को
दाेनो सेनाओ के बीच लेजाकर खड़ा करेा श्रीकृष्ण अर्जून के रथ को दोनाे सनाओ
के बीच मे खड़ा कर देते है और अर्जून सेना मे पिता को,भाईयो को,आचार्यो को
अपने मामाओ को अपने मित्रो को अपने पुत्रो को और ससुरो को देखता है और
इन सब को देखकर उन्हे बहुत दु:ख होता हे और अर्जून श्रीकृष्ण से कहते है
हे! कृष्ण ये सभी लोगो को दखकर मेरे अंंग सीथील (रिलेक्स) हो गये है,
मुख भी सुखा जा रहा है शरीर मेे कम्पन (वाइब्रेसन्स) हो रही है और मेरे हाथ से
गाण्डीव धनुष भी गीरा जा रहा है, त्वचा भी बहुत ज्यादा जल रही है और मेरा मन
भ्रमित हो रहा है और खड़ा रहने को भी मै समर्थ नहीें हूूँ, हे! मधुसुदन येे सब
मेरे सम्बन्धी है तीन लोक के राज्य के लिए भी मै इन सबको मारना नहीं चाहता हूँ और
अर्जून कहते है ये सभी लोग लोभ के कारण भ्रष्ट हो चुके है कुल के नाश काेे नही देख
पा रहे है परन्तु हे! जनार्धन कुल के नाश को जाननेे वाले हम लोग इस पाप से हटने
के लिए क्यूँ नहीं विचार करते है और अर्जून कहते है मुझे इस बात का शौक है कि
हम लोग बुद्धिमान होकर भी इस महान पाप को करने के लिए तैयार हो गए,
ध्रष्टराज के पुुत्र रन मे मारे तो वह मारना भी मेरे लिए अति कल्याणकारी होंगा।
Summary Of Chapter : रिश्तो को बेहतर करने की कला ||
तो ये इस अध्याय की हम लोगो ने समरी देखी तो इससे हमे सीखन को मीलता है
रिलेशनशीप मास्टरी की रिश्तो को कैसे बेहतर किया जाए, देखो अर्जून के अन्दर
कितना प्रेम था कि अपने दुश्मनो के लिए भी वह इतना अच्छा सोच रहे है इतने अच्छे विचार
आ रहे है अपने दुश्मनो के लिए भी लेकिन हमारे साथ प्राॅब्लम क्या है की हमारे अपनो
के लिए ही हमे अच्छे विचार नही आते हमारा प्यार प्रकट नहीं होता है हमारा प्रेम प्रकट
नहीें होता है अर्जुन कहते है की तीन लोक के राज्य के लिए भी मै इन्हे नही
मार सकता हूँ सब मेरेे अपने है सम्बन्धी है, देेखो अर्जून का प्यार
देखो आप, फीर अर्जूून कहते है,
ठिक है लोभ के कारण ये भ्रष्ट हो चुँके है ये कुुल के नाश को नहीं समझ पा रहे है ,
लेकिन हम तो समझदार है हम मे तो ज्ञान है की हमे ही पीछे हठ जाना
चाहिए क्यूँ हम ये पाप कर रहे है और फिर अर्जून कहते हैै ठिक है अगर ध्रष्टराज
के पुत्र मुझे मार भी देते हैै तो भी मेरे लिए अच्छा ही है अर्जुन के अन्दर इतना प्रेेम है
इतना प्यार है की रिश्तो को बचाने के वो सब कुछ करने को तैयार है।
लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं होता है अगर हमारे फैमिली मे हमारा बड़ा भाई या छोटा
भाई हम पर हाथ उठाता है तो उल्टा हम भी हाथ उठा देते है या हम भी कुछ गलत कहने
लगते है हम लाेेग ये नहीे सोचते की अगर सामने वालेे पर्सन/या व्यक्ति नेे कुछ गलत कर
भी दिया तो ठिक है हो सकता हो ज्ञान की कमी या उतनी
समझदारा नहीं हो, लेकिन हम तो समझदार है।
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अगर हम पीछे हट जायेंगे तो कोई झगड़ा होंगा ही नहीं और इसी तरह हम अपने
रिश्तो को बेेहतर से बेहतरीन करते चले जायेंगेे इस अध्याय से हमे ये
सीखने को मीलता है,कि हम अपने रिश्तो को बचाने की हर सम्भव कोशीश करनी चाहिए
अगर हमारा कोई अपना कुछ गलत कर भी देता है तो हम अपनी समझदारी
दिखाते हुँए उस प्रॉब्लम को साल्व करने की कोशीश करनी चाहिए अगर
हम ऐसा करेंगे तो हमारा रिश्ता बेहतर से बेहतरीन हो जायेंगा ।
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